विवेकानंद

1) इसलिए देर होने पर वह बालक अपने विद्यालय उसी रास्ते से जा रहा था।
क) विद्यालय जाने का छोटा रास्ता खतरनाक क्यों था ?
उत्तर: विद्यालय जाने का छोटा रास्ता एक निर्जन बगीचे से होकर गुजरता था। जहां असंख्य शरारती बंदर रहा करते थे। वह आने जाने वाले लोगों को डराते और उन पर हमला करते थे। इसलिए वह रास्ता खतरनाक था।

ख) लेखक के अनुसार सृष्टि ने जीव को हाथ, नाखून, सींग, पंजे आदि क्यों दे रखे हैं ?
उत्तर: लेखक के अनुसार सृष्टि ने प्रत्येक जीव को संघर्ष के लिए हाथ, नाखून, सींग और पंजे दे रखे हैं ताकि वह अपनी सुरक्षा स्वयं कर सके।

ग) बालक खतरनाक रास्ते से विद्यालय जाने को क्यों मजबूर था ?
उत्तर: बालक के विद्यालय जाने का समय हो गया था। वह खतरनाक रास्ता विद्यालय जाने का सबसे छोटा रास्ता था। उस रास्ते से सफर जल्दी तय हो जाता था। इसलिए बालक उस खतरनाक रास्ते से विद्यालय जाने को मजबूर था।

घ) बंदरों के हमले से बालक ने क्या सीखा ?
उत्तर: बंदरों ने जब इस बार बालक नरेंद्र पर हमला किया तो नरेंद्र के पास भागने की जगह नहीं बची। उन्होंने बचने के लिए एक डंडा उठाकर बंदरों से लड़ने का निश्चय कर लिया। इससे डर कर बंदर भाग गए। बालक ने इस बात से सीखा कि आक्रमण ही आत्मरक्षा का सर्वोत्तम उपाय है।

2) उनमें भी ऐसी हिमाकत करने की हिम्मत नहीं थी।
क) अलवर के राजा ने स्वामी विवेकानंद से क्या प्रश्न पूछा ?
उत्तर: अलवर के राजा ने स्वामी विवेकानंद से पूछा कि वह किसी चित्र या मूर्ति की उपासना नहीं करते, व्यवहार के इस विषय में वह बिल्कुल नास्तिक है, तो उनके इस अपराध के लिए उन्हें क्या दंड मिलेगा ?

ख) स्वामी विवेकानंद के अनुसार अलवर के राजा को उनकी मूर्ति पूजा के प्रति नास्तिकता का क्या दंड मिलेगा ?
उत्तर: स्वामी विवेकानंद के अनुसार अलवर के राजा को उनकी मूर्ति पूजा के प्रति नास्तिकता का कोई दंड नहीं मिलेगा।

ग) लोगों ने चित्र पर थूकने से क्यों मना कर दिया ?
उत्तर: दीवान के कमरे में अलवर के महाराज के पिता का चित्र टंगा था। स्वामी विवेकानंद जी ने उस चित्र को मँगवा कर लोगों से उस पर थूकने को कहा, लेकिन राजा के पिता का चित्र होने के कारण किसी में ऐसी हिम्मत नहीं थी कि उस चित्र पर थूके।

घ) स्वामी विवेकानंद ने राजा को मूर्ति पूजा का महत्व कैसे समझाया ?
उत्तर: स्वामी विवेकानंद ने राजा को मूर्ति पूजा का महत्व समझाते हुए कहा कि जिस तरह कागज के टुकड़े पर महाराज के पिता का चित्र बनते ही लोगों की आस्था उस चित्र से जुड़ गई और वह कागज का टुकड़ा आदरणीय हो गया। उसी प्रकार किसी चित्र में या किसी मूर्ति में यद्यपि परमेश्वर नहीं होता किंतु उसे देखते ही परमेश्वर की याद आती है। भक्त परमेश्वर की आस्था से जुड़ जाता है।

3) सचमुच कुछ ही मिनट में किताब के पन्ने उलट पलट कर विवेकानंद लौटा रहे थे।
क) विवेकानंद जी ने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के सामने क्या समस्या जाहिर की ?
उत्तर: स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस जी से निजी समस्या जाहिर करते हुए कहा “गुरु जी जब मैं कोई पुस्तक पढ़ता हूँ तो उसकी बातें मुझे याद नहीं होती। कुछ देर बाद में उन्हें भूल जाता हूँ। विषय याद रहे, कभी ना भूले इसके लिए क्या किया जाए।”
ख) रामकृष्ण परमहंस जी ने बालक नरेंद्र के प्रश्न का क्या उत्तर दिया ?
उत्तर: रामकृष्ण परमहंस जी ने बालक नरेंद्र से कहा कि यदि वह सब कुछ याद रखना चाहते हैं तो उन्हें आकाश और पानी की तरह होना पड़ेगा। बिल्कुल खाली। जिस तरह भरे बर्तन में कोई कुछ नहीं रख पाता, उसी तरह यदि चित्त में पहले से ही बहुत कुछ भरा है तो नई सूचना, नए ज्ञान को ठहरने का कोई स्थान नहीं रहता। इसलिए नरेंद्र को आकाश बनने की तैयारी करनी चाहिए, जिससे पूरे संसार के ज्ञान को अपने में समेट ले।

ग) लाइब्रेरी के कर्मचारियों में कानाफूसी क्यों होने लगी ?
उत्तर: स्वामी विवेकानंद कोलकाता के एक विशाल लाइब्रेरी में रोज जाते थे। एक ग्रंथ लेते, कुछ देर उसके पन्नों को उलटते पलटते और फिर उसे लौटा देते। यह देखकर लाइब्रेरी के कर्मचारियों में काना-फूसी होने लगी।

घ) व्यवस्थापक का विस्मय में कई गुना क्यों बढ़ गया ?
उत्तर: व्यवस्थापक को बिल्कुल इस बात का भरोसा नहीं था कि इतने मोटे-मोटे ग्रंथों को कोई इतनी जल्दी समझ सकता है। लेकिन जब उन्होंने स्वामी विवेकानंद से उन ग्रंथों के विषय में प्रश्न पूछने शुरू किए और विवेकानंद जी ने सारे जवाब दे दिए, तो व्यवस्थापक का विस्मय कई गुना बढ़ गया।

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